Friday, March 31, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 7

अयि निज हुणक.र्ति मात्र निराक.र्त धूम्र विलोचन धूम्र शते
समर विशोषित शोणित बीज समुद्भव शोणित बीज लते ।
शिव शिव शुंभ निशुंभ महाहव तर्पित भूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

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