Sunday, April 02, 2006
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 8
धनुरनु सणग रणक्षणसणग परिस्फुर दणग नटत्कटके
कनक पिशणग प.र्षत्क निषणग रसद्भट श.र्णग हतावटुके ।
क.र्त चतुरणग बलक्षिति रणग घटद्बहुरणग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥
कनक पिशणग प.र्षत्क निषणग रसद्भट श.र्णग हतावटुके ।
क.र्त चतुरणग बलक्षिति रणग घटद्बहुरणग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥