Wednesday, March 29, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 5

अयि रण दुर्मद शत्रु वधोदित दुर्धर निर्जर शक्तिभ.र्ते
चतुर विचार धुरीण महाशिव दूतक.र्त प्रमथाधिपते ।
दुरित दुरीह दुराशय दुर्मति दानवदूत क.र्तान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 4

अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुण्ड गजाधिपते
रिपु गज गण्ड विदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड म.र्गाधिपते ।
निज भुज दण्ड निपातित खण्ड विपातित मुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥

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