Tuesday, March 28, 2006
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 3
अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रिय वासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुणग हिमालय श.र्णग निजालय मध्यगते ।
मधु मधुरे मधु कैटभ ग~न्जिनि कैटभ भ~न्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥
शिखरि शिरोमणि तुणग हिमालय श.र्णग निजालय मध्यगते ।
मधु मधुरे मधु कैटभ ग~न्जिनि कैटभ भ~न्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 2
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शणकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।
दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते जय
जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥
त्रिभुवनपोषिणि शणकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।
दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते जय
जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥