Tuesday, March 28, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 2

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शणकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।
दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते जय
जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥

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