Wednesday, March 29, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 4

अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुण्ड गजाधिपते
रिपु गज गण्ड विदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड म.र्गाधिपते ।
निज भुज दण्ड निपातित खण्ड विपातित मुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥

Comments: Post a Comment



<< Home

This page is powered by Blogger. Isn't yours?