Friday, April 14, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 20

अयि मयि दीनदयालुतया क.र्पयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी क.र्पयासि यथासि तथा.अनुमितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

॥ इति श्रीमहिषासुरमर्दिनिस्तोत्रं संपूर्णम ॥

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 19

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती क.र्पया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 18

कनकलसत्कल सिन्धु जलैरनु सि~न्चिनुते गुण रणगभुवं
भजति स किं न शचीकुच कुंभ तटी परिरंभ सुखानुभवम ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 17

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति यो.अनुदिनन स शिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत ।
तव पदमेव परंपदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 16

विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
क.र्त सुरतारक सणगरतारक सणगरतारक सूनुसुते ।
सुरथ समाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 15

कटितट पीत दुकूल विचित्र मयूखतिरस्क.र्त चन्द्र रुचे
प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चन्द्र रुचे ।
जित कनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भर कु~न्जर कुंभकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 14

कर मुरली रव वीजित कूजित लज्जित कोकिल म~न्जुमते
मिलित पुलिन्द मनोहर गु~न्जित र~न्जितशैल निकु~न्जगते ।
निजगुण भूत महाशबरीगण सद्गुण संभ.र्त केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 13

कमल दलामल कोमल कान्ति कलाकलितामल भाललते
सकल विलास कलानिलयक्रम केलि चलत्कल हंस कुले ।
अलिकुल सणकुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्भकुलालि कुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

Monday, April 10, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 12

अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतणगज राजपते
त्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि रूप पयोनिधि राजसुते ।
अयि सुद तीजन लालसमानस मोहन मन्मथ राजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

Thursday, April 06, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 11

सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्लक मल्लरते
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक भिल्लिक भिल्लिक वर्ग व.र्ते ।
सितक.र्त पुल्लिसमुल्ल सितारुण तल्लज पल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

Tuesday, April 04, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 10

अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कान्तियुते
श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रव.र्ते ।
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 9

जय जय जप्य जयेजय शब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते
भण भण भि~न्जिमि भिणक.र्त नूपुर सि~न्जित मोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटीनट नायक नाटित नाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

Sunday, April 02, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 8

धनुरनु सणग रणक्षणसणग परिस्फुर दणग नटत्कटके
कनक पिशणग प.र्षत्क निषणग रसद्भट श.र्णग हतावटुके ।
क.र्त चतुरणग बलक्षिति रणग घटद्बहुरणग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

Friday, March 31, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 7

अयि निज हुणक.र्ति मात्र निराक.र्त धूम्र विलोचन धूम्र शते
समर विशोषित शोणित बीज समुद्भव शोणित बीज लते ।
शिव शिव शुंभ निशुंभ महाहव तर्पित भूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

Thursday, March 30, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 6

अयि शरणागत वैरि वधूवर वीर वराभय दायकरे
त्रिभुवन मस्तक शूल विरोधि शिरोधि क.र्तामल शूलकरे ।
दुमिदुमि तामर दुन्दुभिनाद महो मुखरीक.र्त तिग्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

This page is powered by Blogger. Isn't yours?