Tuesday, March 28, 2006
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 3
अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रिय वासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुणग हिमालय श.र्णग निजालय मध्यगते ।
मधु मधुरे मधु कैटभ ग~न्जिनि कैटभ भ~न्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥
शिखरि शिरोमणि तुणग हिमालय श.र्णग निजालय मध्यगते ।
मधु मधुरे मधु कैटभ ग~न्जिनि कैटभ भ~न्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥