Friday, April 14, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 14

कर मुरली रव वीजित कूजित लज्जित कोकिल म~न्जुमते
मिलित पुलिन्द मनोहर गु~न्जित र~न्जितशैल निकु~न्जगते ।
निजगुण भूत महाशबरीगण सद्गुण संभ.र्त केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

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