Friday, April 14, 2006
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 15
कटितट पीत दुकूल विचित्र मयूखतिरस्क.र्त चन्द्र रुचे
प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चन्द्र रुचे ।
जित कनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भर कु~न्जर कुंभकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥
प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चन्द्र रुचे ।
जित कनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भर कु~न्जर कुंभकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥