Friday, April 14, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 16

विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
क.र्त सुरतारक सणगरतारक सणगरतारक सूनुसुते ।
सुरथ समाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

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