Friday, April 14, 2006

 

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 18

कनकलसत्कल सिन्धु जलैरनु सि~न्चिनुते गुण रणगभुवं
भजति स किं न शचीकुच कुंभ तटी परिरंभ सुखानुभवम ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

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